यूपी-उत्तराखंड को पछाड़कर पंजाब बना लीची हब: भगवंत मान सरकार ने खोला निर्यात का रास्ता, किसानों का मुनाफा 5 गुना बढ़ा

Punjab overtakes UP-Uttarakhand to become litchi hub

Punjab overtakes UP-Uttarakhand to become litchi hub

चंडीगढ़, 9 नवंबर, 2025: Punjab overtakes UP-Uttarakhand to become litchi hub: भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब सरकार ने लीची उत्पादन और निर्यात में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जिससे किसानों की आमदनी में भारी इजाफा हुआ है। 2023-24 में राज्य ने 71,490 मीट्रिक टन लीची का उत्पादन किया, जो देश का 12.39% है। वर्तमान वर्ष में यह आंकड़ा लगभग समान बना हुआ है। पठानकोट, गुरदासपुर, नवांशहर, होशियारपुर और रोपड़ जिलों में 3,900 हेक्टेयर क्षेत्र में लीची उगाई जा रही है, जिनमें अकेले पठानकोट में 2,200 हेक्टेयर शामिल हैं। मान सरकार की फसल विविधीकरण नीति ने किसानों को गेहूं-धान चक्र से निकालकर सालभर की स्थिर आय का नया विकल्प दिया है।

2024 में पहली बार पंजाब की लीची लंदन पहुंची — 10 क्विंटल लीची को 500% अधिक दाम मिले। इससे किसानों की कमाई में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। 2025 में यह रफ्तार और बढ़ी, जब कतर और दुबई को 1.5 मीट्रिक टन लीची भेजी गई। अब तक 600 क्विंटल निर्यात आदेश सुरक्षित हैं, जिनका मूल्य ₹3–5 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। यह सफलता पंजाब को भारत का उभरता हुआ लीची निर्यात केंद्र बना रही है।

मान सरकार ने लीची किसानों को राहत देने के लिए कई सब्सिडी योजनाएं शुरू की हैं — पैकिंग बॉक्स और क्रेट्स पर 50% सब्सिडी, पॉलीहाउस शीट बदलने पर ₹50,000 प्रति हेक्टेयर तक सहायता, और ड्रिप सिस्टम पर ₹10,000 प्रति एकड़ सहायता। 50 करोड़ रुपये कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हो रहे हैं। पठानकोट और गुरदासपुर में पैकहाउस से किसानों की लागत 40–50% तक घटी है।

निर्यात गुणवत्ता बढ़ाने के लिए केवीके के जरिए 5,000 किसानों को ग्लोबलगैप प्रशिक्षण दिया गया है। एपीडा साझेदारी से एयर कार्गो पर ₹5–10 प्रति किलोग्राम सब्सिडी मिल रही है। राज्य पठानकोट लीची के जीआई टैग के लिए प्रयासरत है। इन पहलों से किसानों की आमदनी 20–30% तक बढ़ी, और अब निर्यात क्लस्टरों में प्रति एकड़ ₹2–3 लाख तक की कमाई हो रही है।

अन्य राज्यों की तुलना में पंजाब की बढ़त साफ है।
उत्तर प्रदेश में लगभग 50,000 मीट्रिक टन उत्पादन होता है, लेकिन निर्यात 0.5 मीट्रिक टन से भी कम है। झारखंड का उत्पादन 65,500 मीट्रिक टन होते हुए भी निर्यात नगण्य है, जबकि पंजाब ने 2024 से ही यूरोप और खाड़ी देशों तक पहुंच बनाई। झारखंड अभी भी पैकेजिंग और कोल्ड चेन की कमी से जूझ रहा है।

असम में लीची उत्पादन 8,500 मीट्रिक टन है, पर निर्यात सिर्फ 0.1 मीट्रिक टन तक सीमित है। वहीं उत्तराखंड, जिसकी पहचान देहरादून वैरायटी से है, 0.05 मीट्रिक टन से भी कम निर्यात कर पाता है। पंजाब की ड्रिप इरिगेशन सहायता और कोल्ड स्टोरेज निवेश ने इन राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।

आंध्र प्रदेश में लीची उत्पादन मात्र 1,000 मीट्रिक टन है और निर्यात शून्य। यहां के किसान बुनियादी सुविधाओं के अभाव में फंसे हैं, जबकि पंजाब के बागवान सब्सिडी और निर्यात से लाभ कमा रहे हैं।

भगवंत मान सरकार का यह अभियान पंजाब को देश का लीची हब बना रहा है। 71,490 मीट्रिक टन उत्पादन, 600 क्विंटल निर्यात आदेश और 500% प्रीमियम दाम के साथ पंजाब किसानों की आर्थिक ताकत बनकर उभरा है। जल्द ही जीआई टैगिंग से “पठानकोट लीची” वैश्विक ब्रांड बनेगी — पंजाब को फलोत्पादन में नई पहचान दिलाते हुए।